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मेरी नई साइकिल


मेरी नई साइकिल 

जब मैं अपने साथियों को साइकिल चलते देखती, तो मेरा भी मन करता कि काश ! मेरे पास भी साइकिल होती | जब मैं दस वर्ष कि हुई, तो पिताजी नई मेरे जन्मदिन पर मुझे एक नई चमचमाती साइकिल लेकर दी | मेरी खुशी का तो ठिकाना ही न रहा | मैंने उस रात सपने में खूब साइकिल चलाई | लाल रंग की मेरी साइकिल बहुत सुन्दर थी | उसकी छोटी - सी गद्दी बहुत नरम थी |

मुझे साइकिल चलनी नहीं आती थी | पिताजी नई मुझे साइकिल सिखाने का वादा किया | उन्होंने साइकिल सिखाने के लिए रविवार को दिन चुना | रविवार को हम दोनों सुबह जल्दी उठकर एक खाली सड़क पर चल दिए | वहाँ पिता जी मुझे साइकिल चलाना सिखाने लगे | इस तरह धीरे - धीरे मैंने साइकिल चलनी सिख ली |

अब मैं सड़क पर अकेली ही साइकिल ले जाती हूँ, पर अभी मुझे साइकिल चलते समय बहुत ध्यान देना पड़ता है | अगर कोई अचानक मेरे सामने आता है, तो घंटी बजा - बजाकर उसके कान सुन्न कर देती हूँ | अब मैं गद्दी पर आराम से बैठकर साइकिल चला लेती हूँ | माँ के छोटे - छोटे काम झटपट कर देती हूँ | दादा जी की चिट्ठी भी जल्दी से पोस्ट कर जाती हूँ | साइकिल से ही स्कूल जाती हूँ | साइकिल चलने से मेरी बहुत अच्छी एक्सरसाइज भी हो जाती है | और मुझे लगता है मेरी लम्बाई भी अभी बढ़ने लगी साइकिल चलाते चलाते | 

इस प्रकार साइकिल आ जाने से मेरे बहुत से काम जल्दी व सरलता से हो जाते हैं, इसलिए मुझे साइकिल बहुत प्यारी लगती है | 
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