मेरी पहली रेल यात्रा



यात्रा का शौक किस को नहीं होता है, यात्रा हमारे जीवन में नई ऊर्जा प्रदान करती है | आज की दुनिया में हर कोई व्यस्त रहता है, ऐसे में यात्रा ही हमें अपनी रोज़ की भाग दौड़ भरी जिंदगी से कुछ समय के लिए निजात दिला सकती है और हम यात्रा के दौरान ही अपने परिवार और दोस्तों के साथ आनंदपूर्वक समय व्यतीत कर सकते है |

इस बार गर्मियों की छुट्टियों में पिताजी ने दिल्ली जाने का निर्णय लिया और उन्होंने रेल की टिकट खरीद ली | जैसे ही मुझे इस बात का पता चला मैं खुशी से झूम उठा यह मेरे पहली रेल यात्रा थी | हमें दिल्ली दक्षिण एक्सप्रेस गाड़ी से जाना था | यह गाड़ी प्रातः छः बजे मद्रास से चलती है | हम आधा घंटा पहले ही स्टेशन पर पहुँच गए और रेल के डिब्बे में अपना सामान रखवा दिया |

थोड़ी देर के बाद गाड़ी ने सीटी दी और उसने प्लेटफार्म पर रेंगना शुरू कर दिया | देखते ही देखते वह रफ़्तार पकड़ने लगी | जब मैंने खिड़की से देखा तब नारियल के पेड़ बहुत ही सुन्दर दिखाई दे रहे थे | हवा के ठण्डे- ठण्डे झोंके मुझे बहुत अच्छे लग रहे थे | फिर हमने कुछ खाना पीना भी किया रेल गाड़ी में खाने का मज़ा ही कुछ और होता है | मैं रेल के डिब्बों मैं इधर उधर घूम भी रहा था मुझे कुछ बच्चे मिले जिन के साथ मैंने बहुत बातें की |

दोपहर के बारह बजने वाले थे | हमारी गाड़ी विजयवाड़ा स्टेशन के पास आकर रुकी | विजयवाड़ा कृष्णा नदी के तट पर है | यह अत्यंत ही सुन्दर स्थान है | गाड़ी रुकते ही बहुत से लोग गाड़ी से नीचे उतरने लगे | हम थोड़ी देर के लिए प्लेटफार्म पर उतरे और इधर उधर घूमने लगे | हमारी गाड़ी दूसरे दिन नागपुर, आमला, इटारसी, झाँसी, ग्वालियर और आगरा होते हुए रात को दिल्ली स्टेशन पर पहुँच गई | फिर हम डिब्बे से उतरकर प्लेटफार्म में घूमने लगे | बाद में हमने टैक्सी ली और होटल की और रवाना हो गए |

इस प्रकार मेरी यात्रा अविस्मरणीय, आनंददायक व कुछ अलग अनुभव प्रदान करने वाली थी | मैं अपनी इस यात्रा को कभी नहीं भूलूँगी |

Browse more topics below on Hindi Essay





time: 0.0174319744