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भ्रष्टाचार : एक अभिशाप


आज के समाज में भ्रष्टाचार इस स्तर तक विद्यमान हो गया है कि बिना भ्रष्टाचार का साथ दिये कोई भी कार्य चाहे वह छोटा हो या बड़ा पूर्ण नहीं हो पाता है | छोटे से छोटे कार्य को पूर्ण कराने के लिए हम पहले उस कार्य का मोल - तोल अपनी सोच या मनः स्थिति के अंदर ही कर लेते हैं फिर उसके लिए बजट तैयार करते हैं, फिर हम उस कार्य को कराने के लिए ऑफिस के चक्कर काटते हैं | कहने का तात्पर्य यह है कि हम स्वयं ही भृष्टाचार में इतने लिप्त हो गए हैं कि नैतिक और अनैतिक कार्यों में अंतर करने की बुद्धि ही कहीं समाप्त हो गयी है |

भ्रष्टाचार शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है - 'भ्रष्ट - अचार' | 'भ्रष्ट' का तात्पर्य है 'बुरा' और 'अचार' शब्द का तात्पर्य  है 'व्यवहार' | अतः भ्रष्टाचार का शाब्दिक अर्थ है  - बुरा व्यवहार करने वाला या मार्ग से भटका हुआ | 
आज के आपाधापी भरे जीवन में प्रत्येक व्यक्ति की सोच व्यक्तिवादी या वैयक्तिक हो गई है | वह स्वयं से ज्यादा किसी के विषय में नहीं सोचता और स्वयं की स्वार्थपूर्ति हेतु नैतिक - अनैतिक हर प्रकार के कृत्यों को करने में भी नहीं झिझकता | अपनी असीमित आवश्यकताओं एवं इच्छाओं के कारण छोटे बाबू से लेकर बड़े- बड़े अफसर तक भ्रष्टाचार जैसे जघन्य पाप में लिप्त हैं |

वर्तमानवस्था में भ्रष्टाचार की जड़ें असीमित क्षेत्रों तक व्याप्त हो चुकी है | भ्रष्टाचार के कारण ही समाज, सरकार, कार्यालयों, व्यापार आदि प्रत्येक क्षेत्रों में बेईमानी, रिश्वतखोरी, मिलावट आदि होने लगी है | आमिर व्यक्ति मुँहमांगी रकम देकर अपना कार्य निकलता लेता है परंतु गरीब व्यक्ति एक छोटे से कार्य के लिये दर - दर भटकता फिरता है | जगह - जगह हाथ - पैर जोड़कर भी कार्य नहीं निकलवा पाता |

बड़े से बड़े नेता, उद्योगपति, ऑफिसर, प्रशासनिक कर्मचारियों ने सामिजिक और राजनितिक और आर्थिक व्यवस्था पर नियंत्रण रखने के लिये ही भ्रष्टाचार को जन्म दिया | अब उसे पाल- पोसकर उसकी जड़ मजबूत करने में संलग्न है |

चुनाव में जीतने के लिए गरीबों पर पैसे लुटाना, हत्या करना, अपहरण करना, आतंकवाद का सहारा लेना, जूठे वादे करना, सामान्य जनता को भडकाना आदि अनैतिकतापूर्ण एवं अमर्यादित कार्य करते रहते हैं | अतः राजनितिक भ्रष्टाचार देश को तथा उसकी राजनीती को दलदल में घसीटता जा रहा है |  

व्यापारिक भ्रष्टाचार ही जनसामान्य की भावनाओं और विश्वासों को कुचलता जा रहा है | छोटे - छोटे व्यापारियों से लेकर बड़े - बड़े उद्योगपतियों तक मुनाफा कमाने के लिए दूध, दाल, चावल, आटा, नमक, मसालों, घी, दवाइयों, कॉस्मेटिक्स के समानों आदि में मिलावट करते हैं | घटिया और मिलावटी सामानों को मिलाकर कम एवं सस्ते दामों में बेच देते हैं, जिससे अनेक बीमारियाँ उत्तपन्न हो जाती हैं |

इनके अतिरिक्त मंहगाई भी भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है | व्यक्ति की तनख्वाह कम और सामान के दाम इतने ऊँचे कि छोटी - छोटी आवश्यकता कि पूर्ति के लिए भी व्यक्ति को मन मारना पड़ता है | अतः व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं कि पूर्ति के लिए भी भ्रष्टाचार जैसे अपराध में लिप्त हो जाता है | 

भ्रष्टाचार जैसे जघन्य अपराध के लिए कड़े से कड़ा कानून बनाया जाना चाहिए | जिसमें भ्रष्टाचार में लिप्त व्यक्ति को कड़ी से कड़ी सजा मिलने का प्रावधान हो | भारतवासियों को अपनी असीमित आवश्यकताओं और स्वार्थों का त्याग कर नैतिकतापूर्ण जीवन व्यतीत करना चाहिए | तभी हम भ्रष्टाचार को जड़ से साफ कर सकेंगे |

मेरा यह मानना है कि भ्रष्टाचार एक अभिशाप है और इस अभिशाप को हम तभी मिटा सकते हैं, जब हम स्वयं इसका त्याग कर नैतिकता का रास्ता अपना लें |
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