रुपये की आत्मकथा



मैं एक रूपया हूँ | मुझ से सभी लोग प्यार करते हैं | मुझे पाने के लिए लोग सब कुछ करने के लिए तैयार रहते हैं | मेरा आकर्षण ही कुछ ऐसा है | मेरा इतना अधिक महत्व है कि मेरे आते ही लोगों का जीवन बदल जाता है | मेरा महत्व तो बहुत अधिक है, पर मेरा जीवन कैसा है, यह भी जानने कि कोशिश क्या तुम ने कभी की है ? आइए, आज मैं आप को अपनी कहानी सुनाता हूँ | सुनिए ध्यान से |

मेरा जन्म धरती माता के गर्भ से हुआ है | मैं वर्षों तक धरती माता के गर्भ में विश्राम करता रहा हूँ | उस समय मेरा रूप आज के रूप से बिल्कुल भन्न था | मेरा बहुत बड़ा परिवार था | हम सब एक ही रूप में मिल - जुलकर रहते थे |

मेरे जीवन में परिवर्तन तब आया जब एक दिन कुछ लोगों ने खान की खुदाई शुरू की | उनके खुदाई शुरू करते ही मेरा दिन काँपने लगा | मैं सोच में पड़ गया | बड़ी-बड़ी मशीनों से हमें खोदा जाने लगा | हम सबको खोद के खान से बाहर निकाल दिया गया | गाड़ियों में लाद कर हमें एक बहुत बड़े भवन में लाया गया | यहाँ रसायन डालकर हमें साफ किया गया | इससे हमें कष्ट तो बहुत हुआ, पर यह सब चुपचाप सहन कर लिया | सोना तप कर ही तो निखरता है | इसी प्रकार कष्ट सहने के बाद ही तो सुख मिलेगा, यह सोचकर हम चुप हो गए | 

इसके बाद हमें टकसाल भेज दिया गया | वहाँ हमें मिट्टी में डालकर पिघलाया गया और उसके बाद हमें साँचो में ढाला गया | हमारा नाम भी रख दिया गया - रुपया | यह देखकर मुझे बहुत खुशी हुई | मेरे रूप में भी अब निखार आ गया | यह रूप पाकर मैं अपने भाग्य पर इतराने लगा |

कई दिन तक मैं अपने साथियों के साथ टकसाल में ही पड़ा रहा | इसके बाद हम सबको इकट्ठा करके थैलों में बंद कर दिया | थैलों के मुख को अच्छी तरह बांध दिया गया और उनपर मोहर लगा दी | अब हम थैलों में कैद थे | सांस लेना और अपने भाग्य को कोसने के सिवाए और कोई चारा न रहा | 

हम से भरे थैलों को सुरक्षा पूर्वक स्टेट बैंक में लाया गया | यहाँ उन थैलों को बड़े और मजबूत कमरे में बंद कर दिया | यह तो ऐसा स्थान था जहाँ न सूर्य की किरण पहुँचती थी और न ही सांस लेने के लिए ताज़ी हवा | दिल मसोस कर रह गया और कर भी क्या सकता था |

कई महीनों तक काल कोठरी में पड़े रहने से मैं निराश हो गया | मैं सोचा कि इससे तो मृत्यु ही भली | पर सभी दिन एक समान नहीं रहते | घूरे कई भी दिन बदलते हैं | मेरे भी भाग्य ने पलटा खाया | मैं जिस थैले में बंद था, उसे खोला गया और बैंक के खज़ांची को दे दिया | बैंक के खज़ांची ने मुझे और मेरे साथियों को एक व्यापारी को दे दिया | मैंने सुख की साँस ली | सोचा अब अच्छे दिन आ गए |

मेरी तो किस्मत ही फूट गई | व्यापारी भी बहुत कंजूस था | उसने बैंक से थैलों को लाकर अपनी तिजोरी में बंद कर दिया | यहाँ भी मेरी हालत में सुधार नहीं हुआ | मन मारकर रह गया | एक दिन सेठ के घर डाकुओं  ने डाका डाला और थैलों को उठाकर ले गए |

डाकुओं ने उन थैलों से रुपए निकाल लिए और उन्हें खर्चने लगा | उन्होंने उन रुपयों से एक दुकारदार से घी - तेल आदि खरीदा | यह जो रुपए यहाँ पड़ा है वह दुकारदार से ही तुम्हें मिला है | यह मैं ही हूँ जो तुम्हारे हाथ में पड़कर अपने भाग्य को सराह रहा हूँ | देखना मेरी इस कहानी को सुनकर मेरे भाग्य पर हँसना नहीं | मेरा ध्यान रखना | मैं तुम्हारे बहुत काम आऊँगा |  

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