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स्वर एक परिचय


स्वर एक परिचय

गुरु परंपरा से प्रसिद्ध है कि पाणिनि ने व्याकरण शास्त्र की रचना के पहले तीर्थराज प्रयाग में जाकर शंकर भगवान की कठिन आराधना की थी, वहाँ विद्या गुरु सनक आदि और भी अनेक ऋषि तपस्या रत थे कुछ काल बाद आशुतोष भगवान शंकर प्रसन्न मुद्रा में तांडव नृत्य के अनंतर 14 बार डमरु बजा कर अंतर्हित हो गए तपस्वी लोग अपनी अपनी भावना के अनुसार उस डमरु ध्वनि से प्रेरणा ग्रहण कर अपने अपने आश्रम में चले गए | पाणिनी के मानस पटल पर भी डमरु ध्वनि की अनुकृति पर यह 14 वर्णनात्मक सूत्र उद्भूत  हो गए | ऋषि इन्हीं 14 सूत्रों को व्याकरण शास्त्र का बीज मंत्र मानकर शास्त्र रचना में प्रवृत्त हुए इन सूत्रों की रचना अति महत्वपूर्ण है प्रथम चार सूत्रों में स्वर तथा शेष सूत्रों में व्यंजन वर्णमाला है इनमें भी प्रथम द्वितीय सूत्रों में मौलिक शुद्ध स्वर अ, इ, उ और तथा तीसरे चौथे में मिश्र विकृत  ( अ + इ = ए , अ  + उ = ओ,  अ + ए = ऐ,  अ + ओ =औ ) स्वरों की योजना है |

स्वर का अर्थ

 
स्वर का अर्थ है ऐसा वर्ण जिसका उच्चारण अपने आप हो सके जिसको उच्चारण के लिए दूसरे वर्ण से मिलने की आवश्यकता ना हो स्वरों का दूसरा नाम अच्  भी है ऐसे वर्ण जिसका उच्चारण बिना किसी दूसरे वर्ण अर्थात स्वर से मिले बिना नहीं किया जा सकता व्यंजन कहलाते हैं |
 
व्यंजन का अर्थ
 
ऐसे वर्ण जिसका उच्चारण बिना किसी दूसरे वर्ण – अर्थात् स्वर से मिले बिना नही किया जा सकता , व्यंजन कहलाते है। ऊपर ‘क’ से लेकर ‘ह’ तक के सारे वर्ण व्यंजन कहलाते है। क में अ मिला हुआ है। इसका शुद्ध रुप केवल क् होगा। व्यंजन का दूसरा नाम ‘इत्’ भी है,इसी कारण व्यंजनमूलक चिन्ह को भी ‘इत्’ कहते है।

स्वर के प्रकार 

स्वर तीन प्रकार के होते है :-
1. ह्रस्व
2. दीर्घ 
3. मिश्रविकृत दीर्घ ।


मिश्रविकृत दीर्घ किन्हीं दो मिश्र स्वरों के मिल जाने से बनता है, जैसे अ+ इ= ए। स्वर के उच्चारण में यदि एक मात्रा समय लगे तो वह ह्रस्व कहलाता है।जैसे –अ, और यदि दो मात्रा समय लगे तो दीर्घ कहलाता है, जैसे- आ, । मिश्र विकृत स्वर दीर्घ होते है।


व्यंजन के प्रकार 

व्यंजनों के भी कई भेद है :-
1.  स्पर्श 
2.  अंत;स्थ 
3.  उष्म   
4.  परुष व्यंजन   
5.  मृदु व्यंजन। 


क से लेकर म तक के वर्ण ‘स्पर्श’ कहलाते है। इसमें  क वर्ण आदि पाँच वर्ग है। य र ल व अंत;स्थ है, अर्थात स्वर और व्यंजन के बीच के है। श ष स ह ‘उष्म’ है,अर्थात इनका उच्चारण करने के लिए भीतर से जरा अधिक जोर से श्वास लानी पड़ती है। पाँचों वर्गो के प्रथम और द्वितीय अक्षर (क, ख, च, छ,ट, ठ,त, थ, प, फ,) तथा श, ष, स, वर्णों को ‘परुष’ व्यंजन और शेष को मृदु व्यंजन कहते है।

विसर्ग
 
विसर्ग को वस्तुतः अघोष ‘ह’ समझना चाहिए। यह सदा किसी स्वर के बाद आता है।यह स् अथवा र् का एक रुपान्तर मात्र है। किन्तु उच्चारण की विशेषता के कारण इसका व्यक्तित्व अलग है।
 

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