कृदन्त वर्तमान कालिक कृदन्त धातुओं के बाद आने वाले प्रत्यय ‘’कृत’’ कहे जाते है। शब्द के अन्त में लगने के रुप में जाने जाते है। अर्थ होता है – ‘ हुए’ कहते हुए , जाते हुए।
वर्तमान कालिक कृदन्त –
| मूलधातु | पुल्लिंग | स्त्रीलिंग | नपुंसकलिंग |
| कृ | कुर्वन् | कुर्वन्ती | कुर्वत् |
| गम् | गच्छन् | गच्छती | गच्छत् |
| स्था (तिष्ठ) | तिष्ठन् | तिष्ठती | तिष्ठत् |
इसी प्रकार धाव्, वद्, जि(जय), नम्, नृत्य्, दृश्(पश्य), पा(पिब्), लिख् आदि धातुएँ
वर्तमान कालिक कृदन्त रुप में चलती है और इनका अर्थ होता है – जाते हुए, नाचते हुए, खाते हुए, पीते हुए, देखते हुए।
गच्छन् सिंह; पश्यति – जाता हुआ शेर देखता है।
आत्मने पदी धातुओं के वर्तमान कालिक कृ न्त के (अन्त में ) आन होता है - करता हुआ।
| मूल धातु | वर्तमान कालिक कृदन्त |
| मुद् | मोदमान |
| सह् | सहमान |
| मृ | मृयमान |
| धृ | धृयमान |
| वृध् | वर्धमान |
| जय् | जयमान |
| दीप् | दीप्यमान |
इसी प्रकार दृश् , हन्, सेव् , अधि, के भी प्रयोग किये जा सकते है।
वाक्य प्रयोग- मोदमानः छात्रः लिखति - प्रसन्न होता हुआ विद्यार्थी लिखता है।
मृयमाणः श्यानः शयति - मरता हुआ कुत्ता लेटता है।`
भूतकालिक कृदन्त कर्म का विशेषण होता है।
| मूल धातु | कृदन्त |
| अस् | अस्त |
| कथ् | कथित |
| कुप् | कुपित |
| ज्ञातृ | ज्ञातृवत् |
| आप्त् | आप्तवत् |
| शक्त् | शक्तवत् |
| कृ | कृतवत् |
| गत् | गतवत् |
वाक्य प्रयोग - (कर्ता विशेषण में क्तवत् और कर्म विशेषण में क्त प्रत्यय)
विध्यर्थ कृदन्त होना चाहिए , जाना चाहिए के अर्थ में
| मूल धातु | तव्यत् प्रत्यय | अतीय प्रत्यय | धत् या धयत् प्रत्यय |
| दा (देना) | दातव्य | दानीय | देय |
| गम् (जाना) | गन्तव्य | गमनीय | गम्य |
| प्राप् (प्राप्त करना) | प्राप्तव्य | प्रापणीय | प्राप्य |
| ग्रह् | ग्रहीतव्य | ग्रहणीय | ग्राह्य |
| नम् | नन्तव्य | नमणीय | नम्य |
अव्यय भूत कृदन्त (करके) | मूल धातु | अव्यय भूत |
| पठ् (पढ़ना) | पठित्वा |
| भू (होना) | भूत्वा |
| वद् (बोलना) | वदित्वा |
| हस् (हँसना) | हँसकर- हसित्वा |
| क्षिप् (फेंकना) | क्षिप्तवा |
| लिख् (लिखना) | लिखित्वा |
| गृह् (लेना) | गृहित्वा |
वाक्य में प्रयोग- पुस्तकम् गृहीत्वा सः विद्यालयम् गच्छति ।
हेतु वाचक कृदन्त (तुमुन प्रत्यय) (१) तुमुन प्रत्यान्त शब्दों का प्रयोग ‘को’ अथवा ‘के’ लिए का अर्थ देता है ।
(२) जब कोई क्रिया किसी दूसरी क्रिया के लिए की जाती है उस निमित्तार्थक क्रिया
में तुम (तुमुन प्रत्यय) हुआ करता है ।
(३) तुमुन का अर्थ ‘अर्थ’ शेष रहा करता है ।
(४) तुमुन प्रत्यान्त शब्द के रुप नही चलते क्योंकि यह ‘अव्यय’ होता है ।
| मूल धातु | तुमुन प्रत्यय |
| अधि | अध्येतुम् |
| ईक्ष् | ईक्षितुम् |
| कथ् | कथयितुम् |
| कृ | कर्तुम् |
| लभ् | लब्धुम् |
| शी | शयितुम् |
| त्यज् | त्यक्तुम् |
| सह् | सोढुम् |
इसी प्रकार हन्तुम् , प्रापयितुम् , रोदितुम् , हसितुम् , स्पृष्ठुम् , भवितुम् , गन्तुम्
प्रघर्षयितुम् ( अपमानित करने के लिए ) , आहर्तुम् , क्रीडितुम् आदि ।
अहम् संस्कृतम् अध्येतुम् इच्छामि । - मैं संस्कृत पढ़ना चाहता हूँ ।