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नेताजी का चश्मा
Class 9


कहानी का उद्देश्य 
 
कहानी का उद्देश्य यह स्पष्ट करना है कि देश के सभी छोटे बड़े - व्यक्ति यहाँ तक कि बच्चे भी देश भक्ति की भावना से ओत - प्रोत होते हैं तथा सभी अपने - अपने तरीकों तथा सामर्थ्य से देश के निर्माण में योगदान देते हैं | हमें किसी के तुच्छ से तुच्छ योगदान का उपहास नहीं उड़ाना चाहिए |  

प्रश्न १ : मूर्ति कहाँ स्थापित थी ? उस मूर्ति वर्णन कीजिए |
 
उत्तर: - मूर्ति शहर के मुख्य बाज़ार के मुख्य चौराहे पर स्थापित की गई थी |
         मूर्ति संगमरमर की थी | टोपी की नोक से कोट के दूसरे बटन तक कोई दो फुट ऊँची थी | मूर्ति सुन्दर थी | कुछ - कुछ मासूम और कमसिन लगती थी | फौज़ी वर्दी में मूर्ति को देखते ही "दिल्ली चलो" और "तुम मुझे खून दो ...." जैसे नारे याद आने लगते थे | इस प्रकार मूर्ति कलाकार की कला का सफल और सराहनीय प्रयास था | किन्तु उस मूर्ति की आँखे पर संगमरमर का चश्मा नहीं था जिसकी कसर मूर्ति की तरफ़ देखते ही खटकती थी |

प्रश्न २. किस घटना के कारण हालदार साहब की आखें भर आई ? इस घटना द्वारा लेखक ने क्या संदेश देने का प्रयास किया है ?
 
उत्तर : कैप्टन की मृत्यु के कई दिनों कई बाद जब हालदार साहब नेताजी की बिना चश्मे की मूर्ति पर एक ऐसा सरकंडे से बना हुआ चश्मा देखा, जैसा बच्चे बना लेते हैं, तब उन बच्चों की देशभक्ति की भावना को देखकर उनकी आँखें भर आई |
इस घटना कई माध्यम से लेखक यह संदेश देते हैं कि देशभक्ति किसी व्यक्ति की उम्र, जाती, संप्रदाय और कर्तव्य से जुड़ी नहीं होती | हर एक व्यक्ति अपने सामर्थ्य कई अनुसार देश के प्रति अपना सम्मान व्यक्त कर सकता है जैसे कि कैप्टन चश्मेवाले ने तथा उसके पश्चात किसी बच्चे ने सरकंडे का चश्मा बनाकर किया | अतः हमें किसी कि भावना एवं प्रयासों का मज़ाक नहीं उड़ाना चाहिए, बल्कि उसकी सराहना करनी चाहिए |


प्रश्न ३. देशभक्त कौन था ? उसका परिचय दें | पानवाले ने उसका मजाक क्यों उड़ाया ?

उत्तर :- देशभक्त कैप्टन चश्मे वाला था | वह एक बूढ़ा तथा दुबला - पतला एवं लंगड़ा व्यक्ति था | वह फेरी लगाकर चश्मे बेचता था | लोग उसे कैप्टन कहते थे, पर वह किसी फ़ौज का कैप्टन नहीं था | वह निर्धन था, किन्तु उसमें नेताजी के प्रति सम्मान कि भावना थी | इसलिए वह अपने फ्रेमों में से एक फ्रेम नेताजी की मूर्ति पर लगाकर उनके प्रति सम्मान प्रकट करता था |
हालदार साहब ने जब पानवाले से कैप्टन चश्मे वाले के बारे में पूछा कि क्या वह नेताजी का साथी है या वह आज़ाद हिन्द फ़ौज का भूतपूर्व सिपाही है ? ऐसी प्रश्न के कारण पानवाले ने कैप्टन का मज़ाक उड़ाया क्योंकि उसके अनुसार कोई लंगड़ा आदमी फ़ौज में किस प्रकार भर्ती हो सकता है अर्थात पानवाले के अनुसार वह देशभक्त नहीं हो सकता है |


प्रश्न ४. धूलभरी यात्रा में हालदार साहब को कौतुक और प्रफुल्ल्ता के क्षण किस प्रकार प्राप्त होते थे ?

उत्तर :- दो साल तक हालदार साहब अपने काम के सिलसिले में उस कस्बे से गुजरते रहे जहाँ नेता जी कि मूर्ति थी | वे सदा मूर्ति के बदलते हुए चश्मों को देखते थे | कभी वहाँ गोल चस्मा होता, तो कभी चौकोर, कभी लाल, कभी काला, कभी धूप का चश्मा तो कभी बड़े काँचों वाला गोगो चश्मा | इस प्रकार मूर्ति की आँखों पर बदलते हुए चश्मों के साथ नेताजी की मूर्ति के बदलते रूप की झलक देखकर हालदार साहब को धूलभरी यात्रा में कौतुक और प्रफुल्ल्ता के क्षण प्राप्त होते थे |

प्रश्न ५ . 'होम कर देने वालों' इस वाक्यांश से लेखक का क्या तात्पर्य है ? क्या देश पर मर - मिटने वाले व्यक्तियों का वास्तव में उपहास किया जाता है ? अपने विचार लिखिए |

उत्तर : 'होम कर देने वालों' इस वाक्यांश से लेखक का तात्पर्य उन देशभक्त महान व्यक्तियों से है जो अपना घर - परिवार तथा अपना जीवन देश के लिए समर्पित कर देते हैं और शहीद हो जाते हैं |
ऐसा नहीं है कि देश पर मर - मिटनेवालों का सदैव उपहास ही किया जाता है | आज भी मनुष्य में देशप्रेम के भाव हैं | पहले कि अपेक्षा कुछ कमी अवश्य आई है परन्तु परिस्थिति के अनुसार कभी कभी इसमें परिवर्तन भी आता है - जैसे हम इस कहानी में देखते हैं कि पानवाला पहले कैप्टन चश्मेवाले का मज़ाक उड़ाता है, किन्तु उसकी मृत्यु का समाचार सुनकर उसकी पलकें भीग जाती हैं जो सम्मान का सूचक है | साथ ही छोटे बच्चों द्वारा बनाया गया सरकंडे का चश्मा भी इस बात का सूचक है कि छोटे बच्चे भी हमारे वीर सपूतों के सम्मान में कमी नहीं आने देना चाहते हैं तभी तो वे सामर्थ्यानुसार नेताजी कि आँखों पर वह चश्मा पहना देते हैं |
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