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शुचिपर्यावरणम्
Class 10


शुचिपर्यावरणम्
 
अयम् पाठः आधुनिकसंस्कृतकवेः हरिदत्तशर्मणः लसल्लतिका इति रचनासंगृहात् सड्कलितो अस्ति । अत्र कविः महानगराणाम् यन्त्राधिक्येन प्रवर्धितप्रदुषणोपरि चिन्तितमनाः दृश्यते। सः कथयति यद् इदम् लौहचक़म् शरीरस्य मनसश्च शोषकम् अस्ति । अस्मादेव वायुमंडलम् मलिनम् भवति ।
 
कविः महानगरीयजीवनात् सुदूरम् नदी -निर्झरम् वृक्षसमुहम् लताकुण्जम् पक्षिकुलकलरवकूजितम् वनप्रदेशम् प्रतिगमनाय अभिलषति ।

हिंदी अनुवाद  :-
यह पाठ आधुनिक संस्कृत के कवि हरिदत्त शर्मा की "लसल्लतिका" इस रचना संग्रह से संकलित है यहां कवि महानगरों की मशीनों की अधिकता (यान्त्रिक बहुलता) से बढ़े हुए प्रदूषण के ऊपर चिंतित मन वाले दिखाई दे रहे हैं वह कह रहे हैं कि यह लौहचक्र तन और मन का शोषक है । इससे ही वायुमंडल मलिन हो रहा है कवि महानगर के जीवन से बहुत दूर नदी झरने ,वृक्ष समूह, लताकुण्ज, एवं पक्षियों के समूह के कलरव से गुंजित वन प्रदेश की और जाने की अभिलाषा कर रहे हैं।
 
श्लोक १
दुर्वहमत्र जीवितम् जातम् प्रकृतिरेव शरणम्
शुचि -पर्यावरणम् ।
महानगर मध्यमे चलदनिशम् कालायसचक्रम् 
मन: शोषयत् तनू: पेषयद् भ्रमति सदा वक्रम् ।
दुर्दांन्तैर्दशनैरमुना स्यान्नैव जनग़सनम् ।

 
अन्वय :- अत्र जीवितम् दुर्वहम् जातम् प्रकृति: एवं शरणम् । शुचि -पर्यावरणम् भवेत् । महानगर मध्यमे अनिशम् चलद् कालायसचक्रम् मन: शोषयत् तनू: पेषयद् सदा वक्रम् भ्रमति । अमुना दुर्दान्तै: दशनै: जनग्रसनम् नैव स्यात् । शुचि-----------।

हिंदी अनुवाद  :-
यहाँ जीवन कठिन हो गया है, प्रकृति ही एकमात्र कारण है | इसलिए पर्यावरण की शुद्धि हो | महानगरों में दिन-रात चलता हुआ लोहे का चक्र (पहिया) मन को सुखाते हुए, शरीर को पीसते हुए सदा टेढ़ा घूमता है इसके भयानक दाँतों से मानव का विनाश नहीं होना चाहिए | इसलिए पर्यावरण की शुद्धि हो |

श्लोक 2
कज्जलमलिनम् धूमम् मुण्चति शतशकटीयटानम् ।
वाष्पयानमाला संधावति विजयन्ती थ्वानम् 
यानानाम् पड्क्तयो ह्यनन्ता कठिनम् संसरणम् । शुचि,,,।


अन्वय  :- शतशकटीयानम् कज्जलमलिनम् धूमम् मुण्चति।ध्वानम् वितरन्ति वाष्पयानमाला संधावति। यानानाम् अनन्ता पड्क्तयो हि संसरणम् कठिनम् अस्ति। 

हिंदी अनुवाद  :-
सैकड़ों मोटर गाड़ियां काजल सा मलिन काला धुआं छोड़ती है कोलाहल देती शोर मचाती हुई रेलगाड़ी की पंक्ति दौड़ती है गाड़ियों की अनंत पंक्तियों में निश्चित ही चलना कठिन है इसलिए पर्यावरण की शुद्धि हो |

श्लोक 3
वायुमंडलम् भृशम् दूषितम् न हि निर्मलम् जलम् ।
कुत्सितवस्तुमिश्रितम् भक्ष्यम् समलम् धरातलम् 
करणीयम् बहिरन्तर्जगति तु बहु शुद्धिकरणम् । शुचि,,,,,।


अन्वय :- हि वायुमंडलम् भृशम् दूषितम् जलम् न निर्मल । भक्ष्यम् कुत्सित वस्तु मिश्रितम् धरातलम् समलम्  ।अन्त:बहि: जगति तु बहु शुद्धिकरणम् करणीयम् ।

हिंदी अनुवाद  :-
निश्चित ही वायु मंडल अत्यधिक दूषित हो गया है, पानी स्वच्छ नहीं है भोज्य पदार्थ मिलावटी रासायनिक पदार्थों से मिले हुए हैं पृथ्वी गंदगी से युक्त है आंतरिक और बाहरी संसार में बहुत शुद्धीकरण करना है इसलिए पर्यावरण को शुद्ध करो ।

श्लोक 4
कण्चित् कालम् 
नय मामस्मान्नगराद् बहुदूरम् ।
पृपश्यामि गामान्ते निर्झर - नदी - पर: पूरम्  ।
एकान्ते कान्तारे क्षणमपि में स्यात्   सण्चरणम् । शुचि----- 


अन्वय  :- माम्  कण्चित् कालम् अस्मात् नगरात् बहुदूरम् नय । ग्रामान्ते निर्झर नदी पय: पूरम् पृपश्यामि‌। क्षणम् में एकान्ते कान्तारे अपि सण्चरणम् स्यात् ।

हिंदी अनुवाद  :-
मुझे कुछ समय के लिए इस नगर से बहुत दूर ले चलो जहां गांव की सीमा पर झरने नदी और जल से भरे हुए तालाब जी भर कर देख लूंगा क्षण भर थोड़ी देर के लिए मेरा एकांत जंगल में भी घूमना हो इसलिए पर्यावरण को शुद्ध करो |

श्लोक 5
हरिततरूणाम् ललितलतानाम्  माला रमणीया ।
कुसुमावलि: समीरचालिता स्यान्मे  वरणीया।
नवमालिका रसालम् मिलिता रूचिरम् संगमनम्। शुचि,,,,,,,


अन्वय  :- हरिततरूणाम् ललितलतानाम्  माला रमणीया ।
समीरचलिता  कुसुमावलि: में वरणीया स्यात् । नवमालिका रसालम् मिलिता, संगमनम् रुचिरम् ।

हिंदी अनुवाद  :-
हरे हरे वृक्षों की और सुंदर लताओं की माला अति मनोहारी है हवा से चलाई हुई फूलों की पंक्ति मेरे द्वारा लेने योग्य अर्थात मुझे अपनी ओर खींच रही है नयी लताएं आम के वृक्षों से लिपट गई है उनका मिलन सुंदर मनोहारी हो इसलिए पर्यावरण की शुद्धि हो |

श्लोक 6
अति चल बन्धो! खगकुलकलरव गुण्जितवनदेशम् 
पुर कलरव सम्भृजितजनेभ्यो धृतसुखसन्देशम् ।
चाकचिक्यजालम्  नो कुर्याज्जीवितरंसहरणम् ।शुचि,,,,,,


अन्वय :- अयि बन्धो ! पुर कलरव सम्भृजितजनेभ्य: धृतसुखसंदेशं  खगकुलकलरव गुण्जित वन प्रदेशं चल । चाकचिक्यजालं जीवितरसहरणं नो कुर्यात् ।

हिंदी अनुवाद  :-
अरे मित्र नगर के कोलाहल से विचलित दुखी लोगों के लिए सुख का संदेश धारण करने वाले पक्षियों के समूह की ध्वनि से गुंजायमान वन प्रदेश की ओर चलो चकाचौंध भरी दुनिया हमारे जीवन के रस का आनंद का हरण न करें इसलिए पर्यावरण की शुद्धि हो |

श्लोक 7
पृस्तरतले लतातरूगुल्मा नो भवन्तु पिष्टा: 
पाषाणी सभ्यता निसर्गे स्यान्न समाविष्टा। 
मानवाय जीवनं कामये नो जीवन्मरणं । शुचि,,,,,।


अन्वय :- लतातरूगुल्मा: प्रस्तरतले पिष्टा: नो भवन्तु । पाषाणी सभ्यता निसर्गे समाविष्टा न स्यात् । मानवाय जीवनं कामये जीवन्मरणं नो ।

हिंदी अनुवाद  :-
लता वृक्ष और झाड़ी पत्थरों के नीचे ना पीसे । पथरीली पाषाण सभ्यता प्रकृति में समाहित ना हो । मनुष्य के लिए जीवन की कामना करता हूं जीते जी मरना नहीं । इसलिए पर्यावरण की शुद्धि हो ।

पृश्न १:-एकपदेन उत्तरं लिखत
( एक शब्द में उतर लिखिए) 

( क)  अत्र जीवितं कीद्दशं जातम्  ? 
उत्तर :- दुर्वहम् ( कठिन) 

(ख) अनिशम् महानगर मध्ये किन प्रचलति ? 
उत्तर:- कालायसचक्रम् ( लोहे का चक्र ) 

( ग) कुत्सित वस्तु मिश्रितम् किं अस्ति ? 
उत्तर:- भक्ष्यम् ।

( घ) अहम् कस्मै जीवनं कामये? 
उत्तर:- मानवाय 

( ड) केषाम् माला रमणीया ?
उत्तर:-  हरिततरुललितलतानाम् ।

पृश्न २:- अधोलिखीतानां पृश्नानां उत्तरानि संस्कृतभाषया लिखत्? 
नीचे लिखें प्रश्नो के संस्कृत भाषा में लिखिये  ,

( क) कवि: किमर्थं प्रकृते: शरणं इच्छति ? 
कवि किसलिए प्रकृति की शरण चाहता है।
उत्तर :- अत्र धरातले जीवितं दुर्वहम् जातम् अतः कवि: प्रकृते: शरणम् इच्छति।
यहां धरातल पर जीवन कठिन हो गया है इसलिए कवि प्रकृति की शरण चाहता है।

(ख) कस्मात् कारणात् महानगरेषु संसरणम् कठिनम् वर्तते? 
किस कारण से महानगरों में चलना कठिन है? 
उत्तर :- मार्गेषु यानानाम् अनन्ता: पड्क्तय: सन्ति एतस्मात् कारणात् महानगरेषु संसरणम् कठिनम् अस्ति।
मार्ग में गाड़ियों की अनंत पंक्तियां हैं। इस कारण से महानगरों में चलना कठिन है।

(ग) अस्माकं पर्यावरणे‌ किं किं दूषितं अस्ति? 
हमारे पर्यावरण में क्या क्या दूषित है ।
उत्तर:- अस्माकं पर्यावरणे‌ वायुमंडलं जलं, भक्ष्यम् धरातलं च दूषितं अस्ति ।
हमारे पर्यावरण में वायुमंडल, जल , भोज्य पदार्थ और धरातल दूषित हैं।

(घ) कवि: कुत्र सण्चरणम् कर्तुम् इच्छति ? 
कवि कहां घूमना चाहता है।
उत्तर - कवि: क्षणं एकांते कान्तारे सण्चरणं कर्तुम् इच्छति । कवि क्षणभर के लिए एकांत जंगल में घूमना चाहता है।

(ड) स्वस्थ जीवने कीदृशे वातावरणे भ्रमणीयम् ? 
स्वस्थ जीवन के लिए कैसे वातावरण में घूमना चाहिए।
उत्तर:-  स्वस्थ जीवने स्वच्छ वातावरणे भ्रमणीयम् ।
स्वस्थ जीवन के लिए स्वच्छ वातावरण में घूमना चाहिए।

(च) अन्तिमे पद्यांशे कवे: का कामना अस्ति ? 
अन्तिम पद्यांश में कवि की क्या कामना है।।
उत्तर :- अन्तिमे पद्यांशे कवे: कामना अस्ति यत् लतातरूगुल्मा प्रस्तरतले पिष्टा नो भवन्तु। पाषाणी सभ्यता निसर्गे समाविष्टा न स्यात्। मानवाय जीवनं भवेत् जीवन्मरणं न इति |

पृश्न  :-३:- सन्धि। सन्धि विच्छेदं कुरू
क. प्रकृति :+ एवं    = प्रकृतिरेव
ख. स्यात् + न+ एवं  = स्यान्नैव
ग. हि + अनन्ता:= ह्यनन्ता: 
घ. बहि:+ अन्त:+ जगति= बहिरन्तर्जगति
ड. अस्मात्+ नगरात्  = अस्मान्नगरात्
च. सम् + चरणम् = सण्चरणम्
छ. धूमम् + मुण्चति = धूमंमुण्चति ।

अन्तिम पद्यांश में कवि की कामना है कि लता, वृक्ष और झाड़ी पत्थरों के नीचे ना पीसे। पथरीली सभ्यता प्रकृति में समाहित न हो। मनुष्य के लिए जीवन हो, जीते जी मरना नहीं |

पृश्न ४ :- अधोलिखितानां पदानां पर्यायपदं लिखत    
नीचे लिखें पदों के पर्याय शब्द लिखिए। 
सलिलं जलम्
आमृम् रसालम्
वनम्। कान्तारम्
शरीरम्। तनु: 
कुटिलम्। वक्रम्
      निसर्ग          प्रकति
पाषाण:।   प्रस्तर:
पाषाणी। पथरीली
रूचिरम्। मनोहारी
निर्झर: प्रपात
माला। पंक्ति


अधोलिखित पदानां विलोम पदानि पाठात् चित्वा लिखत् 
नीचे लिखें शब्दों के विलोम शब्द पाठ से चुनकर लिखिए 
 
सुकरम् दुर्वहम्
दूषितम्। शुद्धता
गृहणन्ती। मुण्चति
निर्मलम्। समलम्
दानवाय। मानवाय
सान्ता:। अनन्ता:
ध्वानम्।  शान्तम्
नवीना। पुरातना
सभ्यता। असभ्यता
जीवन:  मरण:

पृश्न ५ :- उदाहरणमनुसृत्य पाठात् चित्वा च समस्तपदानि‌ समासनाम च लिखत।
उदाहरण के अनुसार और पाठ से चुनकर समस्त पद और समास का नाम लिखिए। 
 
विगृह पद। समस्त पद। समास नाम
मलेन सहितं। समलम्। अव्ययीभाव
हरिता: च ये तत्व: तेषां‌। हरिततरूणां कर्मधारय
नवा मलिका। नवमालिका। कर्मधारय
धृत: सुख सन्देश: येन् तम् धृतसुखसन्देशम्   बहुबीहि:
कज्जलम् इव मलिनम् कज्जलमलिनम्  कर्मधारय
दुर्दान्तै: दशनै:  दुर्दांतदशनै कर्मधारय


पृश्न ६ :- रेखांकित पदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुलूत  
रेखांकित ‌शब्दो के आधार पर प्रश्न  निर्माण कीजिए।  

क. शकटीयानं कज्जलमलिनम् थूमम् मुण्चति ।
गाड़ी काजल के समान काला धुआं छोड़ती है।
प्रश्ननिर्माण:- किं कज्जलमलिनम् धूमं मुण्चति ? 
कौन काजल के समान काला धुआं छोड़ती है?

ख. उद्याने पक्षिणां कलरवम् चेत: प्रसादयति।
उद्यान में पक्षियों का कलरव मन को प्रसन्न करता है  ।
प्रश्ननिर्माण:- उद्याने केषाम् कलरवम् चेत: प्रसादयति ? 
उद्यान में किनका कलरव मन को प्रसन्न करता है ? 

ग. पाषाणी सभ्यतायां। लतातरूगुल्मा पृस्तरतले पिष्टा: सन्ति ।
पथरीली सभ्यता में लता वृक्ष और झाड़ियां पत्थरों के नीचे पीस रही है।  
प्रश्ननिर्माण:- पाषाणीसभ्यतायां  के पृस्तरतले पिष्टा: सन्ति ?
पाषाणी सभ्यता में कौन पत्थरों के नीचे पीस रहें हैं  ।

घ. महानगरेषु वाहनानां अनंता: पंक्तय: धावन्ति।  
महानगरो में वाहनों की अनन्त पंक्तियां दौड़ती हैं। 
प्रश्ननिर्माण:- केषु वाहनानाम् अनन्ता: पंक्तय: धावन्ति ? 
किनमें वाहनों की अनन्त पंक्तियां दौड़ती हैं।

ड. प्रकृत्या : सन्निधौ वास्तविकं सुखं विद्यते।  
प्रकृति के निकट वास्तविक सुख है। 
प्रश्ननिर्माण:- कस्या: सन्निधौ वास्तविकं सुखं विद्यते? 
किसके निकट वास्तविक सुख  है
      
 
 
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