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कवि भूषण


May 27,2023
कवि भूषण का जन्म कानपुर जिला के तहसील घाटमपुर के यमुना तट तिर्वापुर में हुआ था। उनके पिता का नाम रत्नाकर त्रिपाठी था वे देवी के बड़े भक्त थे। जिसके आशीर्वाद से उनके चार पुत्र - चिन्तामणि, भूषण,मतिराम, नीलकंठ थे। चारों भाई कवि थे। उनमें भूषण वीररस के बड़े प्रतिभाशाली कवि हुए।

भूषण बाल्यकाल से ही बड़े स्वतंत्र और उद्दंड प्रकृति के थे। उस समय मुगल सम्राट औरंगजेब का राज्य था। औरंगजेब कविता प्रेमी था उसके दरबार में कई राजकवि थे। इसलिए भूषण की प्रतिमा के विचार से उनकी कविता सुनने की इच्छा प्रकट की। भूषण ने कहा मैं वीररस की कविता पड़ता हूं। मेरी कविता सुनकर आप का हाथ मूंछ पर चला जाएगा। हाथ न धोने से मूंछ अपवित्र हो जाएगी। यह सुनकर औरंगजेब ने अविश्वास प्रकट करते हुए कहा। यदि मेरा हाथ मूंछ पर नहीं गया तो मैं तेरा सिर कटवा दूंगा। भूषण ने उनकी यह शर्त सहर्ष स्वीकार कर ली। और उसी क्षण वीररस के छः कवित्त पढ़ें। उनमें से एक है -
 
किन्हें खंड खंड ते प्रचंड बल बंड वीर,
संबल मही के की अरि खंडन भुलाने है।
लै लै दंड छंडे ते न मंडे सुख रंचक हुं।
हेरत हिराने ते कहुं न ठहराने है
पूरब पछांह आन माने नहि दच्छिन हू।
उत्तर धरा को धनी रोषत निज थाने है।
भूषण भनत नवखंड महि मंडल में।
जहां तहां दीसत अब साहि के निसाने है।


ऐसे वीररस पूर्ण ओजस्वी कवित्त सुनकर औरंगजेब जोश में आ गया और उनका हाथ मूंछ पर चला गया। भूषण की प्रतिज्ञा पूरी हो गई।

कवि भूषण वीररस के कवि थे एक बार संध्या समय रायगढ़ पहुंच कर एक देवालय में ठहरे। दैवयोग से शिवाजी भी वहां अपने छद्म वेश में पहुंचे। भूषण का परिचय पाकर वे अत्यंत प्रसन्न हुए। और उन्होंने शिवाजी संबंधित रचनाएं सुनने की इच्छा प्रकट की। उस समय भूषण ने यह छंद पढ़ा।

इन्द्र जिमि जम्भ पर,बाडव सुअम्भ पर
रावण सदम्भ पर, रघुकुल राज है।
पौन वारिवाह पर,संभु रतिनाह पर,
ज्यों सहस्र बाह पर,राम द्विजराज है।
दावा द्रुमदुण्ड पर,चीता मृगझुंड पर
भूषण वितुण्ड पर, जैसे मृगराज है
तेज तम अंश पर,कान्ह जिमि कंस पर
त्यों म्लेच्छ बंस पर,सेर सिवराज है।


शिवाजी ने अपनी प्रशंसा का यह छंद अठारह बार पढ़वाकर सुना जब भूषण पढ़ते पढ़ते थक गए तब शिवाजी ने अपना परिचय देते हुए उन्हें पुरस्कृत किया और अपना राजकवि बना लिया।
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