गधैया ताल



Apr 24,2025
गधैया ताल
 
एक बार राजा सातवाहन और उनकी पत्नी चन्द्रलेखा भ्रमण करते हुए उज्जयिनी की ओर आ रहे थे। वे विक्रमादित्य के वंशज थे। रास्ते में एक टूटा सा पुराना तालाब मिला। पता लगाने पर मालुम हुआ कि इसका नाम गधैया ताल है। जान पड़ता था कि कई बार लोगों ने इसकी मरम्मत कराई थी फिर भी इस ताल की अवस्था ठीक नहीं हुई थी। निस्संदेह यह बहुत पुराना मालूम होता था रानी की उत्सुकता अचानक बढ़ गई मुझे भी इस नाम ने चौकाया। गधैया कुछ विचित्र नाम था ।

गाँव वालों ने बताया कि पहले इस तालाब के बीच में एक बड़ा सा खम्भा था जो प्रातःकाल ऊपर उठने लगता था और दोपहर तक आकाश के बीचोंबीच पंहुच जाता था। सूर्य देवता उस पर एक क्षण के लिए विश्राम कर के आगे बढ जाया करते थे और सूर्यास्त तक वह खम्भा भी घटते घटते पानी के धरातल तक आ जाया करता था।

एक बार विक्रमादित्य उस पर बैठ गए। उद्देश्य था सूर्य देवता से मिलना वे रास्ते में ही जल गये पर सूर्य देवता प्रसन्न हो गए और उन्हें अक्षय बटुआ दिया जिसका पैसा कभी घटता ही नहीं था। परन्तु जब वे उतरे तो सामने एक गरीब धोबी मिल गया जिसका गधा खो गया था। सारे परिवार के एक मात्र साधन गधे के खो जाने से वह बड़ा ही व्याकुल था।

दयालु विक्रमादित्य ने वह बटुआ उसे ही दे दिया। धोबी मूर्ख था विक्रमादित्य को वह पहचान भी नहीं सका और बटुए के महत्व पर उसे विश्वास नहीं हुआ। गधा खरीदने भर का पैसा उसने निकाल लिया और बटूए को तालाब में फैककर चलता बना उसे भय था कि उसके हाथ में बटूआ देखकर लोग उसे चोर समझेंगे। बटूए के अपमान से सूर्य देवता कुपित हुए और उन्होंने तालाब के खम्भे को वहां से हटा लिया। मगर वह बटुआ अब भी सिक्के उगला करता है ।मालवा में जो सिक्के चलते हैं वे उसी से निकला करते हैं यह ताल तब से गधैया ताल कहलाता है और वे सिक्के गधैया सिक्के।




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